'केवल ज्ञान विज्ञान' यह आदि से (जब से सृष्टी निर्माण हुई) है।
ब्रम्हा, विष्णू, महादेव, शक्ती, शेष सब केवल का आधार ले के इस सृष्टी मे अपना अपना कार्य पूरा कर रहे है।
हर युग मे 'आदि सतगुरू' आते है, और यह केवलका ज्ञान जिवों तक पहुंचाते है। उन्हे भवसागरसे निकालकर अमरलोक मे लेके जाते है। ऐसेही इस कलजुगमे "आदि सतगुरू सुखरामजी महाराज" राजस्थान मे (भरत खंड मे) 'जोधपुर' जिला, बिराही' गाँव में ब्राम्हण कुलमे संमत १७८३ चैत्र शुद्ध ९ गुरुवार - ४-४-१७२६ मे आये।
गुरू महाराजने गर्भवास मे जनम नही लिया, बल्की "सुखराम" नामक बालक के देह मे (जब बालकका देह छुट गया) सतस्वरुप (अमर लोक) देशसे आकर प्रवेश करके देह धारण किया।
गुरू महाराजने अखंडीत रुप से अठरा साल तक एक पत्थरपर बैठकर केवलकी भक्ती (रामनाम का भेदसहित सुमिरण) की।
नब्बे साल तक रहकर सव्वा लक्ष जीवोंको परम मोक्ष मे लेके गये।