ज्ञान चर्चा
(१) मै कौन हूँ ?
(२) मै कहासे आया हूँ ?
(३) मुझे कहाँ जाना है ? ( मेरा इस जनम मे अंतिम लक्ष्य क्या है ?
ये सब सवालोंका सही जवाब जानने के लिए पहेले हमे इस जगत की रचना (सृष्टी रचना ) समझ लेना जरुरी है।)
१) इस जगतमे शुरुसे दो पद चलस्से आये है।
(१) परात्परी परमात्माका ” सतस्वरुप” (२) होणकल पारब्रम्ह है।
(२) परात्परी परमात्मासे (अमरपुरुष) पहेले “प्रधान पुरुष” निर्माण किया, और वो सतलोक मे रहेने लगा।
(३) प्रधान पुरुशसे “निरंजन” हुआ।
(४) निरंजनसे “ॐकार ” हुआ।
(५) ॐकारसे “महतत्त हुआ।
(६) महतत्तसे पाच तत्व ( आकश, वायुमंडल,अग्नी,जल,पृथ्वी ) और “शक्ति” (त्रिगुणी माया ) निर्माण हुये।
(७) शक्ती को सृष्टी निर्माण करनेका साहबसे (परमात्मासे) ह्कुम हुआ।
(८) शक्तिने पुरुषोका ध्यान किया।
(९) अंड कटाक्षसे “विष्णू” पैदा हुये।
(१०) विष्णूके नाभीसे गगनमे कमल निकला,और कमलसे “ब्रम्हा”पैदा हुये।
(११) ब्रम्हाके भृकुतीसे “शंकर”पैदा हुये।
(१२) आगे ये चारोंने (ब्रम्हा,विष्णू,महेश,शक्ती) त्रिलोक और चौंदा भुवन तैयार किये।
होणकाल पारब्रम्हकी व्याप्ती।
(अ) तीन ब्रम्ह (चिदानंद,शिवब्रम्ह,पारब्रम्ह) और तेरा लोक (महामाया,प्रकृती,ज्योती,अजर,आनंद, वजर,इखर,निरंजन,निराकार,शिव्ब्रम्ह,
महाशून्य,शुन्यसागर,परब्रम्ह)
(ब) ब्रम्हा,विष्णू,महेश,शक्ती।
(क) तीन लोक (स्वर्ग, म्रूत्यू,पातळ)और चवदा भुवन(भुर, भुवर,स्वर,महर,जन,तप,सत,तल,अतल,वितल,सुतल,तलातल,रसातल,महातल)
ओतो जीव ब्रम्ह सुण होई।
याकु पकड सके नही कोई।
सबही करम जीव इण साया।
सुख के काज जगत हुयो भाया।
ब्रम्ह ज्या सुण सुख दु:ख नाही।
लेणा एक न देना काई।
ता कारण यो खेल बनायो।
पांच भुत कर संग हुय आयो।
अर्थ
यह “जीव” तो ब्रम्ह है,इसे कोईभी पकड नही सकता।
सब इस जीवकी आश्रयसे लेकीन इस जीवको कर्मका सहारा लिया है।
जब ये जीव कर्म करता है,तब कर्म बनते है। पहेले ये जीव ब्रम्हमे था।
वहासे क्युं आया तो, पाम्च इंद्रियोकी (शब्द,स्पर्श,रुप,रस,गंध) सुख की चाहणाके लिये।
ब्रम्हमे तो सुख और दु:ख कुछ भी नही है।
ए जीवने पांच भुत ( आकाश,वायु, अग्नी,जल,पृथ्वी) से देह धारण करके इस संसारमे आया है।
इस विवेचनसे पहेले दो सवालोंका जबाब हमे मिल जाता है।
(१) मै ‘जीवब्रम्ह’हूँ।
(२) और मै शुरुसे पारब्रम्हसे आया हूँ।
इस संसारमे ये ‘जीव’कर्म बधंनमे अटक गया।
और अपने अपने कर्मके हिसाबसे इस संसारमे सुख और दु:ख भोगने लगा,
और लक्ष चौर्यासी योनी मे जन्म-मृत्यु का(आवागमन)चक्करमे महादु:खमे फ़ंस गया
(अ)संसारके दु:ख
(१) आधि-मनके दु:ख।
(२) व्याधि- शरीरके दु:ख।
(३) उपाधि-बाहरसे कुछभी सबंध न होते हुयेभी आनेवाले दु:ख।
(ब) महादु:ख
(१) आवागमन-इस जीवका लक्ष चौर्यासी योनीमे आना और जानेका भरी दु:ख।
(२) नरकवास और अगतीका दु:ख।
गर्भवासका दु:ख।
(१) गर्भमे इस जीव को उलटा लटकाया रहता है।
(२) इस जीवका मुहं गर्भमे मल/मुत्र मे डुबा हुआ रहता है।
(३) गर्भमे इस जीवको सांस लेना बडा कठीण होता है।
(४) गर्भमे चारों ओरसे इस जीवको जठराग्नीका ताप सहना पडता है।
(५)गर्भमे इस जीवको कडक बांधके रखा रहता है।
कर्म के दु:ख/महादु:ख
(१) इस जीव को सब कर्मके फ़ल भोगनेही पडते है।
(२) “यम” के हातोसे बुरीतरहसे पिटा जाता है।
जीवका महादु:ख का मुल कारण कर्मगती है,और कर्मगती तीन प्रकारकी है,
(१)क्रियमाण (२)संचित(३)प्रारब्ध।
(अ) मृत्यु लोक मे ओ दु:ख भारी,मरता बार न लागे रे।
इंद्रि सुखी वे नाही पुरण,चाय बहोत घट जागे॥
(ब) गर्भवासमे करे पुकारा,सुन हो साई शिरजणहारा।
दुजा दु:ख मोये भुगतावो, गर्भवास सु बाहर लावो॥
(क) अबके बाहर करु बसेरा,निसदिन जाप करु हर तेरा।
तुम कुं भुल कबु नाही जाऊ,जे हर अब के बाहर आवू॥
(ड) ऐसा बचन गर्भके मांही,हर्सु कोल किया था याही।
हर को छोड नाही आन ध्याऊ, जे हर अब के बाहर आवू।।
(इ) इतनी हमको सुजगी,अरस परस दिल माय।
बिना भगती जुग जीव सो, नरक कुंड मे जाय॥
(फ़) ऎसा जबर काल कसाइ,तीन लोक चुन खावे।
ब्रम्हा,विष्णू,महेश्वर,शक्ती ऎ सीर ताल बजावे॥
(ग) पुनरपी जन्मम पुनरपी मरणम,पुनरपी जननी जठरेशयनम।
संतोने इस मनुष्य देहका भारी गुणभी बताया है।
(१) मनुष्य देह मिलना दुर्लभ है।(लक्ष चौर्यासी योनि भोगनेकेबाद मिलता है।)
(२) इतना दुर्लभ होनेकेबादभी क्षणभंगूर है।
(३) ७७ करोड ७६ लक्ष सांस इस जीव को मनुष्य देहमे मिली है।
(४) भारी गुण- जो भी भक्ती किया,तो उसका फ़ल मिलता है। और भक्ती संचय की जा सकती।
(५) ब्रम्हा,विष्णू,महेश,इंद्र आदि देवता इस मनुष्य देहकी चाहणा करते है।
(६) लोक – मृत्युलोक – सिर्फ़ मत्यु लोकमे ‘संत’होते है।
देह – मनुष्यदेह – “रामनाम”का संचय किया जा सकता है।
नाम – रामनाम – इस नामसे मोक्ष प्राप्ती की जा सकती।
सेवा – संतसेवा – संतोकी सेवा के बिना रामसे (परमात्मासे)स्नेह नही बनता।
देव लोकमे कारणीक देह होता है,और इसमे भक्ती संचय नही होती।
देवलोक मृत्यू लोक
(१) कारणीक देह (१) कारजीक देह
(२) सुमिरणसे भक्ती संचय नही होता। (२)भक्ती संचय होता है।
(३) जीवका आवागमन मिट्ता नही। (३) रामनामका सतगुरूद्वारा भेदसहीत सुमिरण करनेसे
जीवका आवागमन मिटता है, और परममोक्ष प्राप्त कर सकता है।